जातक का विदेश में प्रवास का विश्लेषण
बहुत से जातकों का यह सपना होता है कि विदेश में जाकर नौकरी, पढाई या व्यापार किया जाए | विदेश की चकाचोंध उन्हें आकर्षित करती है , यही कारण है कि वह पढ़ाई लिखाई पूरी करके , किसी भी तरह से विदेश में बसना चाहते हैं | विदेश में बसने के लिए कुंडली में कुछ विशेष योग होने चाहिए तभी व्यक्ति विदेश जा सकते हे | कुछ महात्वपूर्ण योग जैसे की लग्नेश, चौथा भाव, सातवा भाव, नवम भाव ,बाहरवां भाव , गुरु राहु, शनि, चन्दर्मा इत्यादि गृह और इनका सम्बन्ध व्यक्ति को विदेश अवश्य भेजता है| इस पर विस्तार हम पूर्वक चर्चा करेंगे
ज्योतिष शाश्त्र के विभिन्न ग्रंथो के अनुसार जातक की कुंडली में ग्रहो की स्थिति तय करती है. की जातक विदेश जायेगा के नहीं. यदि जातक की कुंडली में विदेश जाने का योग है तो वह किसी न किसी कारण से विदेश यात्रा जरूर करता है। विदेश यात्रा का कारण व्यवसाय, पढ़ाई या व्यापर भी हो सकता है. जब तक जातक की कुंडली में विदेश यात्रा के योग नहीं हैं, वह विदेश नहीं जा सकता। सवाल यह है कि किस तरह से किसी जातक की कुंडली में विदेश यात्रा के योग बनते हैं और उन्हें कैसे पहचाना जाए..
विदेश जाने के मुख्य भाव
तृतीय भाव -छोटी यात्रा
चौथा भाव- विदेश यात्रा (यदि अशुभ हो)
सप्तम भाव -व्यवसाईक यात्रा |
अष्ठम भाव -जल यात्रा ,समुद्र यात्रा का कारक |♦
द्वादश भाव -विदेश यात्रा ,समुद्र यात्रा ,अनजानी जगह पर यात्रा
विदेश यात्रा के योग
ग्रंथो और अनुभवों पर आधारित प्रसिद्ध नियम
- कुंडली में चौथा और बाहरवें घर या उनके स्वामियों का संबंध विदेश में स्थायी रूप से रहने का सबसे बड़ा योग बनIता है। इस योग के साथ चतुर्थ भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव आवश्यक हैl उस घर में कोई भी पाप ग्रह स्थित हो या उसकी दृष्टि हो।
- सप्तम और बाहरवें भाव या उनके स्वामियों का सम्बन्ध भी जातक को विवाह के बाद विदेश लेकर जाता है।
- अपने अनुभव के अनुसार देखा है की यदि तीसरे भाव का सम्बन्ध नवमे या बारहवें से बन जाये तो भी जातक को विदेश जाने का अवसर मिल जाता है।
- बृहस्पति मेष के 9 वें और 12 वें घर में मजबूत है। इसलिए, विशेष रूप से मेष में बृहस्पति की ऐसी नियुक्ति विदेशी यात्रा को इंगित करती है
- जातक के विदेश जाने में दूसरे भाव का भी महत्वपूर्ण स्थान है. यदि दूसरे भाव का स्वामी आठवे या बाहरवें भाव में हो तो जातक विदेश से धन कमाता है . घर से बाहर जाने के लिए दूसरा स्थान भी अशुभ होना चाहिए पंचम और बाहरवें भाव और उनके स्वामियों का संबंध शिक्षा के लिए विदेश जाने का योग बनiता है। इस योग में जातक पढ़ने के लिए विदेश जा सकता है।:कुंडली में नौवे भाव का सम्बन्ध यदि बाहरवें भाव से हो तो जातक का विदेश में जाने का योग बनता हे
- कुंडली में नौवे भाव का सम्बन्ध यदि चौथे भाव से हो तो भी जातक का विदेश में जाने का योग बनता हे.
- लग्नेश आठवे और बारहवें भाव में हो तो भी जातक को विदेश जाने के अवसर मिलते है
- लग्नेश नवम में और नवमेश लगन में होने से भी विदेश जाने के अवसर मिलते है
- यदि नवम का सम्बन्ध तीसरे भाव से हो तो जातक तीरथ यात्रा के लिए विदेश जा सकता है
- कुंडली के दसवे और बारहवें भाव का सम्बन्ध होने से भी व्यक्ति को विदेश में नौकरी और व्यापर के अवसर प्रापत होते हैं
- कुछ आधुनिक ज्योतिषयो के अनुसार यदि जातक की कुंडली में राहु और चन्द्रमा की युति हो तो भी जातक जनम स्थान से दूर जा सकता है.
- यदि चौथे भाव को कोई पाप गृह भी देख रहा हो, तो भी जातक जनम स्थान से दूर विदेश जा सकता है. क्योंकि चौथा भाव माता का भाव है
- चर राशि और ड्यूल राशि में ज्यादा ग्रह हो तो भी विदेश योग बनता हे
- विदेश देश यात्रा के लिए कारक ग्रह: चंद्रमा, बृहस्पति, शुक्र , शनि एवं राहु हैं। यह देखा गया है की जब चंदर्मा उच्च का होकर आठ, नो और बाहरवें भाव में हो तो जातक के विदेश जाने के योग बनते
विदेश यात्रा का समय –
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बृहस्पति की दशा चल रही हो और वह सातवें या बारहवें भाव में चर राशि में स्थित हो|
शनि की दशा चल रही हो और शनि बारहवें भाव में या उच्च नवांश में स्थित हो|
राहु या केतु की दशा कुंडली में चल रही हो और राहु कुंडली में तीसरे, सातवें, नवम या दशम भाव में स्थित हो|
यह देखा गया हे की जातक को उपर्लिखित दशाओं , अन्तर्दशाओं में विदेश जाने के अवसर प्राप्त होते हैं